गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

अंगदान

एक सामान्य व्यक्ति जिगर, गुर्दा और स्टेम सेल दान कर सकता है, लेकिन ब्रेन डेथ वाले व्यक्ति के परिजन चाहें तो आंख, रक्त वाहिका, फेफड़ा, दिल, वाल्व, जिगर, गुर्दा, त्वचा, अग्नाशय और हड्डी दान कर सकते हैं। भारत में गुर्दे और जिगर का प्रत्यारोपण कई जगहों पर हो रहा है। इनमें एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ शामिल हैं। बीएचयू में भी दो-तीन महीने में एक गुर्दा प्रत्यारोपण होता है।

निजी क्षेत्र के अस्पताल अपोलो, सीएमसी वेल्लूर भी काफी प्रत्यारोपण कर रहे हैं। ब्रेन डेड व्यक्ति चार लोगों को जीवन दे सकता है। इनके गुर्दो को दो लोगों में रोपित किया जा सकता है। जिगर भी दो लोगों में रोपित हो सकते हैं। संजय गांधी पीजीआई के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नारायन प्रसाद कहते हैं कि अंग प्रत्यारोपण में जितने अंगो की जरूरत है, वह लाइव डोनर से ही पूरी हो रही है।

कैडेवर या ब्रेन डेड डोनेशन बढ़ने से ही अंगों की कमी को पूरा करना संभव होगा। एक्सीडेंट के समय ब्रेन डेड व्यक्ति के परिवारजनों को कैसे अंगदान के लिए प्रेरित किया जाए, यह बेहद नाजुक विषय है। परिवार वाले गहरे सदमे में होते हैं। इस काम के लिए काफी समझदार और संयमित व्यक्ति की जरूरत है।

क्या है ब्रेन डेथ ब्रेन डेड व्यक्ति वह होते हैं जिनके मस्तिष्क में ब्रेन स्टेम कोशिकाएं मृत हो चुकी हों। ऐसा तब होता है जब मस्तिष्क को चार सेकेंड से अधिक समय तक ऑक्सीजन नहीं मिलती। इस दौरान शरीर दूसरे अंगों की ठीक रखने के लिए वेंटीलेटर पर रखा जाता है। इस दौरान डाक्टरों का पैनल मरीज का परीक्षण करता है।

आंकड़े ऑर्गन रिट्रीवल एंड बैकिंग ऑर्गनाइजेशन (अबरे) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर जारी हर साल ऑर्गन फेल्योर के मरीज -किडनी - एक लाख -लिवर - अस्सी हजार -हार्ट - अस्सी हजार -पैंक्रियाज - पचास हजार से अधिक -कॉर्निया - एक लाख

अंग प्रत्यारोपण की स्थिति -गुर्दा प्रत्यारोपण 3500 प्रति वर्ष जिसमें अधिकांश लाइव डोनेशन से प्रत्यारोपण होता है। -कॉर्निया कुछ हजार हर साल। -लिवर 150 से कम, हार्ट चालिस से कम, लंग दो, पैंक्रियाज दो, पिछले दस साल में।

कानून - अंग प्रत्यारोपण कानून 1994 के तहत परिजनों की अनुमति से किसी भी मरीज में अंग प्रत्यारोपण किया जा सकता है - डोनर पत्नी, पिता, माता, भाई या बहन हो सकती है। - इधर के वर्षो में 1994-95 के कानून में बदलाव लाया गया जिसमें स्वैप डोनेशन को अनुमति दी गई। इसके तहत किसी जरूरतमंद दो डोनर के अंगों की अदला-बदली की जा सकती है, बशर्ते दोनों मरीजों को डोनर का अंग मरीज में प्रत्यारोपण के लिए मैच न कर रहा हो। - नए कानून के तहत दादा, दादी भी डोनेशन कर सकते हैं।

अंगों की कमी दूर हो सकती है : प्रो. नरायन प्रसाद संजय गांधी पीजीआई के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद कहते हैं कि ट्रांसप्लांट सेंटर बढ़ना चाहिए। उत्तर भारत में केवल पीजीआई हैं जहां किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट हो रहा है। ब्रेन डेथ के बाद अंग लेने के लिए मरीज के परिजनों को संतुष्ट करना होगा कि उनके मरीज का ठीक इलाज हुआ, लेकिन डाक्टर बचा नहीं पाए। इलाज का खर्च अंग लेने वाले अस्पताल को वहन करना होगा। इसके लिए अलग से फंड होना चाहिए। जितने लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत होती है उसका 50 प्रतिशत लोग ही अंगदान करें तो कमी नहीं रहेगी।

संक्रमण लगाता है सफलता पर ग्रहण अंग प्रत्यारोपण के बाद दूसरे अंग को शरीर में रोपित करने पर शरीर का इम्यून सिस्टम उसे दुश्मन मान कर उसके खिलाफ एंटीबाडी बनाने लगता है। दुश्मन यानी एंटीबाडी को कमजोर करने के लिए इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं प्रत्यारोपित मरीज को दी जाती है। इससे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ जाता है।

शरीर की बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि प्रत्यारोपण के बाद मरीज को बैक्टीरिया-वायरस फ्री वातावरण में रखा जाता है फिर भी संक्रमण होने की आशंका रहती है। विशेषज्ञों की माने तो प्रत्यारोपण फेल होने के 20 से 30 मामलों में संक्रमण ही कारण साबित होता है।

किडनी दान से कोई खतरा नहीं किडनी और जिगर दान करने से दानकर्ता के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। विशेषज्ञों के मुताबिक जो लोग किडनी दान करते हैं वे भी उतना ही जीते हैं जितना की दोनों किडनी वाले स्वस्थ लोग।

किडनी दान करने वाले को उच्च रक्चचाप, मधुमेह, कैंसर या किडनी खराब होने का उतना ही खतरा रहता है जितना उसकी उम्र और लिंग वाले व्यक्ति को किडनी दान न करने पर होता है। देखा गया है कि 60 प्रतिशत दानकर्ता आम लोगों से शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य होते हैं। जितना जिगर निकाला जाता है, वह अपने आप ग्रो हो जाता है।

केवल जागरूकता से नहीं बढ़ेगा अंग प्रत्यारोपण: प्रो. राकेश कपूर संजय गांधी पीजीआई और नॉर्थ इंडिया के विख्यात गुर्दा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ प्रो. राकेश कपूर कहते हैं कि हमारे देश में कैडेवर प्रत्यारोपण एक प्रतिशत से भी कम है। कैडेवर प्रत्यारोपण को बढ़ावा देने के लिए सुविधाओं में विस्तार करना होगा।

मसलन, सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति के उपचार का खर्च उठाने के लिए फंड हो। उपचार के बाद भी जिदंगी बचने की उम्मीद न हो तो ब्रेन डेथ के बाद मरीज के परिजनों को अंगदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है। प्रो. कपूर कहते हैं नॉन रिलेटिव प्रत्यारोपण के लिए कमेटी होती है, लेकिन प्रत्यारोपण करने वाले डाक्टर को कोई सुरक्षा नहीं मिलती। यदि डोनर शिकायत कर दे कि बिना उसकी सहमति के लिए अंग लिया तो कोर्ट डॉक्टर को सजा देती है जबकि कमेटी को जवाबदेह होना चाहिए।

(कुमार संजय,हिंदुस्तान,दिल्ली,26.10.2010)

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